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बारह नवंबर को यहीं उद्घाटन समारोह में चीन ने अपनी तकनीकी दक्षता दिखाई थी लेकिन आज चीन के इस दक्षिणी शहर की जनता ने अपने जोश से लोगों का मन मोह लिया। इन खेलों आयोजन से ग्वांग्झू के बुनियादी ढाँचे में अभूतपूर्व सुधार हुआ जहाँ भारत ने पदक के लिहाज से एशियाई खेलों का अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया।
भारत 14 स्वर्ण, 17 रजत और 33 काँस्य पदक सहित रिकॉर्ड 64 पदक जीतकर छठे स्थान पर रहा। इसके साथ ही उसने 1982 में दिल्ली एशियाई खेलों में जीते 57 पदकों के आँकड़े को भी पीछे जोड़ दिया।
समापन समारोह का इस्तेमाल मेजबान देश ने महाद्वीप की सांस्कृति विरासत की झलक पेश करने के लिए भी किया जिसमें दक्षिण एशियाई का प्रतिनिधत्व करते हुए भारतीय गायकों रवि त्रिपाठी और तान्या गुप्ता ने दर्शकों का दिल जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
मेजबान चीन इन खेलों में वैश्विक खेल महाशक्ति के अपने सिंहासन को बरकरार रखते हुए 199 स्वर्ण सहित 400 से भी अधिक पदक जीतकर चोटी पर रहा। कोरिया चीन से काफी पीछे दूसरे स्थान पर रहा जबकि जापान ने तीसरा स्थान हासिल किया।
समापन समारोह में किलिंग (सौभाग्य का प्रतीक जानवर) के नृत्य ने सभी को हैरान किया जबकि एक्रोबैटिक्स और नृत्य के साथ खेलों की सफलता का जश्न मनाया गया।
नृतकों ने इस दौरान ‘ड्रैगन ड्रंक ऑन द पर्ल रीवर’, ‘पेंटिंग ऑफ टॉय फिगरिंग इन इमोशन’ और ‘विंड ऑफ याओ एथेनिक ग्रुप’ पर नृत्य पेश किया जबकि घोंघे के आकृति वाली स्क्रीन पर एशियाई खेलों के मैदान पर हुई प्रतिस्पर्धा की झलक दिखाई गई।
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इसके बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू हुआ जिसमें सपनों जैसा माहौल तैयार किया गया जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। तेजी से बदलते रंगों और पानी में तैरती आकृतियाँ किसी परीकथा से कम नहीं थे।
मुस्कराते बच्चे का चेहरा अवतरित हुआ तो लोगों की साँसे थम गई क्योंकि कुछ देर बाद ही वह एक करोड़ की जनसंख्या वाले इस शहर की प्रतिनिधित्व करने वाली खूबसूरत बालिका बन गई जो रात में सितारों के बीच चाँद जैसी जगमगा रही थी।
उसने जैसे ही अपने हाथ फैलाए सभी तारे और चाँद भी उसके हाथों में आ गए । उसने फिर इन्हें केंद्र में खेलों के मशाल टॉवर की तरफ इन्हें फेंका। जैसे ही वे मैदान पर गिरे कई तरफ से बच्चों ने आकर एशियाई खेलों का प्रतीक बनाया।
आधे चंद्रमा की शक्ल वाले जहाज पर बच्चे गा रहे थे और वह आगे तैर रहा था। इस बीच सैकड़ों गायक अपने हाथों में सितारों को लेकर दो तरफ से चार समूहों में अवतरित हुए। एक युवा गायक ने अपने हाथ में लिंगनान शैली की लालटेन पकड़ रखी थी जिसे बांस से बनाया गया था।
इसके तुरंत बाद कई रंगों का प्रकाश ने दृश्य को रंगीन बना दिया। बच्चों के हाथों में ये प्रकाश यंत्र थे जो वे इस तरह से इनको चमका रहे थे मानो समुद्र से प्रकाश निकल रहा हो।
भारत की प्रस्तुति इसके बाद पेश की गई जिसमें पवित्र नदी गंगा नाव के आकार की स्क्रीन पर अवतरित हुई। गंगा को भारत के कई प्रमुख मंदिरों से गुजरते हुए दिखाया गया। स्क्रीन पर इस बीच ताज महल और आधुनिक वास्तुकला की छवि भी देखने को मिली।
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जब दोनों भारतीय गायक गाते हुए आगे की ओर आए तो पुरुष नृतकों ने मशाल की मीनार के दोनों और दौड़ते हुए त्रिकोण बनाया जबकि लगभग 200 महिला नृतकों ने दो समूहों में भारत की विभिन्न नृत्य शैलियों को पेश किया। पुरुष और महिला नृतकों ने इसके एक साथ मिलकर बॉलीवुड शैली के नृत्य पेश किए।
एशियाई खेलों में खिलाड़ियों के प्रदर्शन और पदक समारोहों की झलक दिखाए जाने से पहले महाद्वीप के अन्य क्षेत्रों के कलाकारों ने भी सांस्कृतिक छठाएँ बिखेरी।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों ने मंच पर गाते और नाचते हुए विभिन्न मानव आकृतियाँ बनाई। इसके बाद खिलाड़ियों के आने के साथ समारोह का औपचारिक कार्यक्रम शुरू हो गया।
भारतीय तिरंगा झंडा स्वर्ण पदक विजेता मुक्केबाज विजेंदरसिंह थामे हुए थे। विजेंदर ने झंडा बाएँ हाथ से पकड़ा हुआ था क्योंकि उनके दाएँ हाथ के अँगूठे में शनिवार रात फाइनल बाउट के दौरान चोट लग गई थी।
ओसीए अध्यक्ष शेख अल सबाह ने चीनी ओलिंपिक समिति के अध्यक्ष लियु पेंग, एशियाई खेलों की आयोजन समिति के कार्यकारी अध्यक्ष हुआंग हुआहुआ ओर ग्वांग्झू के मेयर वान किंगलियांग के साथ मिलकर मुख्य भाषण दिया और 16वें एशियाई खेलों के समापन की घोषणा की।
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ग्वांग्झू मेजर किंगलियांग ने एशियाई खेलों की मशाल ओसीए प्रमुख को सौंपी जिसके बाद उन्होंने इसे फिर इंचियोन के मेयर को दे दिया। इसके बाद दिल्ली में 1951 में पहले एशियाई खेलों में फहराए गए ध्वज और ओसीए ध्वज को कोरियाई प्रतिनिधियों को सौंपा गया।
कोरिया ने मार्शल आर्ट्स ताइक्वांडो सहित कई अन्य कार्यक्रम प्रस्तुत किए और इस दौरान स्क्रीन पर ‘वेलकम ट्र इंचियोन’ और ‘सी यू एट इंचियोन इन 2014’ लिखा था। समापन समारोह के अंत में आयोजन स्थल पर जबर्दस्त आतिशबाजी हुई जिससे पूरा आकाश रंगीन रोशनी से जगमगा उठा।
एथलीटों, मुक्केबाजों और टेनिस खिलाड़ियों के एशियाई खेलों के अंतिम सात दिन में बेहतरीन प्रदर्शन से भारत हर चार साल में होने वाले खेल महाकुंभ में अब तक के सर्वाधिक पदक जीतने में सफल रहा।
भारत ने कुल 14 स्वर्ण, 17 रजत और 33 काँस्य पदक सहित कुल 64 पदक जीते और इस तरह से दिल्लीमें 1982 में जीत गए 57 पदक के अपने पिछले रिकॉर्ड को तोड़कर इतिहास रचा।
पदक तालिका में छठा स्थान भारत का 1986 में सोल एशियाई खेलों के बाद सर्वश्रेष्ठ है लेकिन तब कजाखस्तान, उज्बेकिस्तान और पूर्व सोवियत संघ के देश नहीं हुआ करते थे जिनके आने से मुकाबला और कड़ा हो गया है। कजाखस्तान तो पदक तालिका में भारत से ऊपर रहा। भारत सोल में पाँच स्वर्ण, नौ रजत और 23 काँस्य लेकर पाँचवें स्थान पर रहा था।
इसके बाद भारत कभी आठ से ऊपर नहीं पहुँचा पाया। बीजिंग में 1990 में तो वह केवल एक स्वर्ण पदक जीत पाया था और 12वें स्थान पर रहा था। भारत के 64 पदक हालाँकि पिछले महीने राष्ट्रमंडल खेलों के 101 पदक के सामने काफी कम हैं जिसमें 38 स्वर्ण पदक भी शामिल हैं।
लेकिन राष्ट्रमंडल खेलों के तुरंत बाद ही एशियाई खेल शुरू हो गए और इसमें मुकाबला भी काफी कड़ा था तथा प्रतियोगिताएँ भी अधिक थी। मेजबान चीन ने लगभग 200 स्वर्ण जीते और 1990 के अपने रिकॉर्ड 183 स्वर्ण, 107 रजत और 51 काँस्य पदक सहित 341 पदक के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ने में सफल रहा।
भारत के निशानेबाज और पहलवान बुरी तरह असफल रहे जबकि एथलीट, मुक्केबाज, टेनिस खिलाड़ी सोमदेव देववर्मन तथा महिला व पुरुष कबड्डी टीम ने चमकदार प्रदर्शन किया।
तीरंदाज तरूणदीप राय ने भारत को रजत के रूप में पहला व्यक्तिगत पदक दिलाया जबकि ताखड़ ने अपनी स्पर्धा में उधार ली हुई नाव से भारत को पहला स्वर्ण पदक दिया। जिमनास्ट आशीष कुमार ने फ्लोर स्पर्धा में देश को पहला काँसा दिलाकर इस सफलता की शुरुआत की और तैराक वीरधवल खाड़े का प्रदर्शन भी यादगार रहा।
खाड़े ने पुरुष 50 मी बटरफ्लाई का काँसा जीतकर 1986 सोल खेलों के बाद पूल में भारत को पहला पदक दिलाया। तब खजान सिंह टोकस ने 200 मी फ्लाई में रजत पदक जीता था। भारत ने चीनी मार्शल आर्ट वुशु जैसे खेल में भी चार काँसे अपने नाम किए, जो देश में काफी कम खेला जाता है जबकि एशियाई खेलों में पहली बार शामिल हुए रोलरस्केटिंग में भी भारत ने दो काँस्य जीते।
फ्रीस्टाइल पहलवानों के सुपर फ्लाप शो के अलावा पुरुष हाकी टीम भी तीसरे स्थान पर रही, जिससे स्वर्ण पदक की उम्मीद की जा रही थी। राष्ट्रमंडल खेलों में दो स्वर्ण जीतने वाली महिला बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल भी फ्लाप सूची में शामिल रहीं। चौदह स्वर्ण में से एथलीटों ने सर्वाधिक पाँच जबकि मुक्केबाजी, टेनिस और पुरुष तथा महिला कबड्डी में दो दो सोने के तमगे हासिल किए।
पंकज आडवाणी (बिलियर्डस) ने भारत को यहाँ पहला स्वर्ण दिलाया, जिसके बाद शीर्ष निशानेबाज रोंजन सोढी और रोअर बजरंग लाल ताखड़ ने पहला स्थान हासिल किया। अश्विनी चिदानंदा महिला 400 मी बाधा दौड़ और चार गुणा 400 मी रिले में दो स्वर्ण पदक जीतकर एथलेटिक्स की नयी ‘गोल्डन गर्ल’ बन गई।
अनुभवी धाविका प्रीजा श्रीधरन और सुधा सिंह ने महिलाओं की क्रमश: 10,000 मी. और 3,000 मी. में स्वर्ण जीते। केरल के जोसफ अब्रहाम ने 28 साल के बाद देश को बाधा दौड़ का पहला पदक दिलाया। इससे पहले 1982 एशियाड में चार्ल्स ब्रोमियो ने 800 मीटर बाधा दौड़ में पदक जीता था।
एथलेटिक्स में भारत ने पाँच स्वर्ण, दो रजत और चार काँस्य पदक जीते जो अब तक का दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है इससे पहले इन खेलों में भारत का एथलेटिक्स स्पर्धाओं में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2002 बुसान खेलों में रहा था जहाँ उसने सात स्वर्ण छह रजत और पाँच काँस्य सहित 17 पदक जीते थे।
भारतीय स्टार मुक्केबाज विजेन्दर ने भारतीय अभियान को एक नयी चमक दी। उन्होंने दो बार के विश्व चैम्पियन उज्बेकिस्तान के अब्बोस एतोव को हरा कर स्वर्ण पदक जीता।
युवा मुक्केबाज विकास कृष्ण ने 60 किलो वर्ग में सबसे बड़ा उलटफेर करते हुए खिताब जीता। लंदनओलिम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने का सपना देख रहे विश्व जूनियर और युवा ओलिम्पिक चैम्पियन विकास के शानदार प्रदर्शन से भारत ने मुक्केबाजी (महिला और पुरुष) में कुल दो स्वर्ण, तीन रजत और चार काँस्य पदक जीते। पुरुष मुक्केबाज सुरंजय सिंह (52 किलो) और पाँच बार की महिला विश्व चैम्पियन एमसी मरीकाम से स्वर्ण पदक की उम्मीद थी, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके।
टेनिस में त्रिपुरा में जन्में युवा खिलाड़ी सोमदेव ने एकल के अलावा युगल मुकाबले का स्वर्ण खिताब जीता। सोमदेव ने एक सप्ताह में 15 मैच खेले जो बहुत बड़ी उपलब्धि है। टेनिस में भारत ने दो स्वर्ण, एक रजत और दो काँस्य पदक जीते।
दो बार के पूर्व विश्व चैम्पियन पंकज आडवाणी ने एक बार फिर स्वर्ण पदक जीत कर भारत को इन खेलों में पहले दिन अच्छी शुरुआत दिलाई जबकि इसके बाद निशानेबाज सोढी ने पुरुषों का ट्रैप खिताब और फिर अप्रत्याशित स्वर्ण पदक नौकायन में ताखड़ ने दिलाया।
भारत ने कुल 14 स्वर्ण, 17 रजत और 33 काँस्य पदक सहित कुल 64 पदक जीते और इस तरह से दिल्लीमें 1982 में जीत गए 57 पदक के अपने पिछले रिकॉर्ड को तोड़कर इतिहास रचा।
पदक तालिका में छठा स्थान भारत का 1986 में सोल एशियाई खेलों के बाद सर्वश्रेष्ठ है लेकिन तब कजाखस्तान, उज्बेकिस्तान और पूर्व सोवियत संघ के देश नहीं हुआ करते थे जिनके आने से मुकाबला और कड़ा हो गया है। कजाखस्तान तो पदक तालिका में भारत से ऊपर रहा। भारत सोल में पाँच स्वर्ण, नौ रजत और 23 काँस्य लेकर पाँचवें स्थान पर रहा था।
इसके बाद भारत कभी आठ से ऊपर नहीं पहुँचा पाया। बीजिंग में 1990 में तो वह केवल एक स्वर्ण पदक जीत पाया था और 12वें स्थान पर रहा था। भारत के 64 पदक हालाँकि पिछले महीने राष्ट्रमंडल खेलों के 101 पदक के सामने काफी कम हैं जिसमें 38 स्वर्ण पदक भी शामिल हैं।
लेकिन राष्ट्रमंडल खेलों के तुरंत बाद ही एशियाई खेल शुरू हो गए और इसमें मुकाबला भी काफी कड़ा था तथा प्रतियोगिताएँ भी अधिक थी। मेजबान चीन ने लगभग 200 स्वर्ण जीते और 1990 के अपने रिकॉर्ड 183 स्वर्ण, 107 रजत और 51 काँस्य पदक सहित 341 पदक के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ने में सफल रहा।
भारत के निशानेबाज और पहलवान बुरी तरह असफल रहे जबकि एथलीट, मुक्केबाज, टेनिस खिलाड़ी सोमदेव देववर्मन तथा महिला व पुरुष कबड्डी टीम ने चमकदार प्रदर्शन किया।
तीरंदाज तरूणदीप राय ने भारत को रजत के रूप में पहला व्यक्तिगत पदक दिलाया जबकि ताखड़ ने अपनी स्पर्धा में उधार ली हुई नाव से भारत को पहला स्वर्ण पदक दिया। जिमनास्ट आशीष कुमार ने फ्लोर स्पर्धा में देश को पहला काँसा दिलाकर इस सफलता की शुरुआत की और तैराक वीरधवल खाड़े का प्रदर्शन भी यादगार रहा।
खाड़े ने पुरुष 50 मी बटरफ्लाई का काँसा जीतकर 1986 सोल खेलों के बाद पूल में भारत को पहला पदक दिलाया। तब खजान सिंह टोकस ने 200 मी फ्लाई में रजत पदक जीता था। भारत ने चीनी मार्शल आर्ट वुशु जैसे खेल में भी चार काँसे अपने नाम किए, जो देश में काफी कम खेला जाता है जबकि एशियाई खेलों में पहली बार शामिल हुए रोलरस्केटिंग में भी भारत ने दो काँस्य जीते।
फ्रीस्टाइल पहलवानों के सुपर फ्लाप शो के अलावा पुरुष हाकी टीम भी तीसरे स्थान पर रही, जिससे स्वर्ण पदक की उम्मीद की जा रही थी। राष्ट्रमंडल खेलों में दो स्वर्ण जीतने वाली महिला बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल भी फ्लाप सूची में शामिल रहीं। चौदह स्वर्ण में से एथलीटों ने सर्वाधिक पाँच जबकि मुक्केबाजी, टेनिस और पुरुष तथा महिला कबड्डी में दो दो सोने के तमगे हासिल किए।
पंकज आडवाणी (बिलियर्डस) ने भारत को यहाँ पहला स्वर्ण दिलाया, जिसके बाद शीर्ष निशानेबाज रोंजन सोढी और रोअर बजरंग लाल ताखड़ ने पहला स्थान हासिल किया। अश्विनी चिदानंदा महिला 400 मी बाधा दौड़ और चार गुणा 400 मी रिले में दो स्वर्ण पदक जीतकर एथलेटिक्स की नयी ‘गोल्डन गर्ल’ बन गई।
अनुभवी धाविका प्रीजा श्रीधरन और सुधा सिंह ने महिलाओं की क्रमश: 10,000 मी. और 3,000 मी. में स्वर्ण जीते। केरल के जोसफ अब्रहाम ने 28 साल के बाद देश को बाधा दौड़ का पहला पदक दिलाया। इससे पहले 1982 एशियाड में चार्ल्स ब्रोमियो ने 800 मीटर बाधा दौड़ में पदक जीता था।
एथलेटिक्स में भारत ने पाँच स्वर्ण, दो रजत और चार काँस्य पदक जीते जो अब तक का दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है इससे पहले इन खेलों में भारत का एथलेटिक्स स्पर्धाओं में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2002 बुसान खेलों में रहा था जहाँ उसने सात स्वर्ण छह रजत और पाँच काँस्य सहित 17 पदक जीते थे।
भारतीय स्टार मुक्केबाज विजेन्दर ने भारतीय अभियान को एक नयी चमक दी। उन्होंने दो बार के विश्व चैम्पियन उज्बेकिस्तान के अब्बोस एतोव को हरा कर स्वर्ण पदक जीता।
युवा मुक्केबाज विकास कृष्ण ने 60 किलो वर्ग में सबसे बड़ा उलटफेर करते हुए खिताब जीता। लंदनओलिम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने का सपना देख रहे विश्व जूनियर और युवा ओलिम्पिक चैम्पियन विकास के शानदार प्रदर्शन से भारत ने मुक्केबाजी (महिला और पुरुष) में कुल दो स्वर्ण, तीन रजत और चार काँस्य पदक जीते। पुरुष मुक्केबाज सुरंजय सिंह (52 किलो) और पाँच बार की महिला विश्व चैम्पियन एमसी मरीकाम से स्वर्ण पदक की उम्मीद थी, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके।
टेनिस में त्रिपुरा में जन्में युवा खिलाड़ी सोमदेव ने एकल के अलावा युगल मुकाबले का स्वर्ण खिताब जीता। सोमदेव ने एक सप्ताह में 15 मैच खेले जो बहुत बड़ी उपलब्धि है। टेनिस में भारत ने दो स्वर्ण, एक रजत और दो काँस्य पदक जीते।
दो बार के पूर्व विश्व चैम्पियन पंकज आडवाणी ने एक बार फिर स्वर्ण पदक जीत कर भारत को इन खेलों में पहले दिन अच्छी शुरुआत दिलाई जबकि इसके बाद निशानेबाज सोढी ने पुरुषों का ट्रैप खिताब और फिर अप्रत्याशित स्वर्ण पदक नौकायन में ताखड़ ने दिलाया।
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भारत ने शुक्रवार को चार स्वर्ण, तीन रजत और चार काँस्य समेत कुल 11 पदक जीते जिससे उसके कुल पदकों की संख्या 64 पर पहुँच गई है, जो अब तक का उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। भारत ने अब तक 14 स्वर्ण, 17 रजत और 33 काँस्य पदक जीते हैं।
इससे पहले भारत ने नयी दिल्ली में 1982 में हुए नौवें एशियाई खेलों में 13 स्वर्ण पदक सहित 57 पदक जीते थे जो ग्वांग्झू से पहले उसका पदकों के लिहाज से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। भारत ने हालाँकि किसी एक एशियाई खेलों में सबसे अधिक स्वर्ण पदक 1951 में नई दिल्ली में ही पहले खेलों में जीते थे। भारत तब 15 स्वर्ण सहित 51 पदक जीतने में सफल रहा था।
दोहा में चार साल पहले हुए एशियाई खेलों में भारत ने दस स्वर्ण सहित 53 पदक जीते थे। इसके अलावा उसने 1962 में जकार्ता एशियाई खेलों में 12 स्वर्ण समेत 52 पदक जीते थे।
हैं। इनके अलावा भारतीय दल में 127 कोच, 44 मैनेजर, 8 डॉक्टर, 7 फिजियोथेरेपिस्ट समेत कई अन्य तकनीकी और सरकारी प्रतिनिधि भी शामिल हैं।
चीन एशियाड का 16वाँ पड़ाव है। इस प्रसंग पर एशियाड के अतीत पर एक नजर डाली जाए -
1951 नई दिल्ली : पहले एशियाई खेल 4 से 11 मार्च 1951 के बीच नई दिल्ली में आयोजित हुए थे। ये खेल पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 1950 में होने थे मगर तैयारियों में देरी के चलते इन्हें 1951 तक के लिए टाल दिया गया। हालाँकि जापान को लंदन में 1948 में हुए ओलिम्पिक में हिस्सा लेने नहीं दिया गया था और एशियाई खेल महासंघ की संस्थापक बैठक में भी वो शामिल नहीं हुआ, मगर इन खेलों में उसने हिस्सा लिया। इन खेलों का उद्घाटन देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने किया था।
1954 मनीला : दूसरे एशियाई खेल फिलीपीन्स की राजधानी मनीला में एक से नौ मई 1954 के बीच आयोजित हुए। इन खेलों के उद्घाटन की घोषणा राष्ट्रपति रैमन मैगसायसाय ने की थी और ये रिजाल मेमोरियल स्टेडियम में आयोजित हुए।
1958 टोकियो : तीसरे एशियाई खेलों का आयोजन जापान की राजधानी टोकियो में हुआ। 24 मई से एक जून 1958 के बीच ये आयोजन हुआ, जिसमें 20 देशों के 1820 एथलीट्स ने 13 स्पर्धाओं में हिस्सा लिया। पिछली बार के मुकाबले इस बार पाँच स्पर्द्धाएँ ज्यादा थीं। एशियाई खेलों में पहली बार मशाल की परंपरा भी शुरू की गई।
1962 जकार्ता : चौथे एशियाई खेल 24 अगस्त से चार सितंबर 1962 के बीच इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में आयोजित हुए। इसराइल और ताइवान के एथलीट्स इन खेलों में हिस्सा नहीं ले सके। अरब देशों और चीन के दबाव के चलते इंडोनेशिया सरकार ने इसराइली और ताइवानी प्रतिनिधियों को वीजा देने से इनकार कर दिया। 16 देशों के 1460 एथलीट्स ने एशियाड में हिस्सा लिया और बैडमिंटन इन खेलों में शामिल किया गया। राष्ट्रपति सुकर्णो ने इन खेलों के उद्घाटन की घोषणा की थी।
1966 बैंकॉक : पाँचवें एशियाई खेल नौ से 20 दिसंबर 1966 के बीच थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में आयोजित हुए। ताइवान और इसराइल की खेलों में वापसी हुई। कुल 18 देशों के ढाई हजार एथलीट और अधिकारी इन खेलों में शामिल हुए। महिलाओं के वॉलीबॉल को इन खेलों में शामिल किया गया। थाईलैंड के महाराज भूमिबोल अदुल्यदेज ने इन खेलों का उद्घाटन किया था।
1970 बैंकॉक : छठे एशियाई खेल 24 अगस्त से चार सितंबर 1970 के बीच बैंकॉक में ही आयोजित हुए। शुरुआती योजना के मुताबिक़ दक्षिण कोरिया के सोल को इसका आयोजन करना था मगर उत्तर कोरिया से सुरक्षा को धमकी को देखते हुए उसने दावेदारी छोड़ दी। 18 देशों के 2400 एथलीट्स और अधिकारी इन खेलों में शामिल हुए। यॉटिंग पहली बार इन खेलों में शामिल हुआ और एक बार फिर भूमिबोल अदुल्यदेज ने खेलों का उद्घाटन किया।
1974 तेहरान : सातवें एशियाई खेल एक से 16 सितंबर 1974 के बीच ईरान की राजधानी तेहरान में आयोजित किए गए थे। इन खेलों के लिए आजादी खेल परिसर बनवाया गया था और पहली बार मध्य पूर्व के किसी देश ने इसका आयोजन किया। तेहरान में हुए इस आयोजन में 25 देशों के 3010 एथलीट शामिल हुए जो कि खेलों की शुरुआत से लेकर तब तक का सबसे बड़ा आयोजन साबित हुआ।
तलवारबाज़ी, जिम्नास्टिक्स और महिलाओं का बास्केटबॉल इन खेलों में शामिल हुआ। फ़लस्तीन से ख़तरों को देखते हुए सुरक्षा की ज़बरदस्त व्यवस्था की गई थी। मगर ये खेल राजनीति का भी शिकार हुए क्योंकि अरब मूल के देशों, पाकिस्तान, चीन और उत्तर कोरिया ने इसराइल के विरुद्ध टेनिस, तलवारबाज़ी, बास्केटबॉल और फ़ुटबॉल के मुकाबलों में उतरने से इनकार कर दिया।
1978 बैंकॉक : आठवें एशियाई खेल नौ से 20 दिसंबर 1978 के बीच बैंकॉक में ही आयोजित हुए। बांग्लादेश और भारत के साथ तनाव के बाद पाकिस्तान ने एशियाई खेलों के आयोजन की योजना छोड़ दी। सिंगापुर ने वित्तीय कारणों से खेलों का आयोजन करने से मना कर दिया। इसके बाद एक बार फिर थाईलैंड ने मदद की पेशकश की और खेल बैंकॉक में आयोजित हुए। राजनीतिक कारणों से इसराइल को खेलों से बाहर कर दिया गया। 25 देशों के 3842 एथलीट इसमें शामिल हुए और तीरंदाज़ी के साथ ही बोलिंग को खेलों में शामिल किया गया।
1982 नई दिल्ली : नौवें एशियाई खेल 19 नवंबर से चार दिसंबर 1982 के बीच नई दिल्ली में आयोजित हुए। पहले खेलों के बाद दूसरी बार दिल्ली ने ये खेल आयोजित किए। ये एशियाई खेल एशियाई ओलिम्पिक परिषद के नेतृत्त्व में हुए। एशियाई खेल महासंघ को भंग करके ही एशियाई ओलिम्पिक परिषद का गठन हुआ। 33 देशों के 3411 एथलीट खेलों में शामिल हुए। घुड़सवारी, गोल्फ, हैंडबॉल, नौकायन और महिलाओं की हॉकी इन खेलों में शामिल हुआ।
इससे पहले के खेलों में जापान सर्वाधिक पदक जीतने वाला देश था मगर इन खेलों में पहली बार चीन ने जापान की जगह ले ली और उसके बाद से उसे कोई हटा नहीं सका है। इन खेलों की तैयारी में भारत में बड़े पैमाने पर रंगीन टेलिविजन का प्रसार हुआ। इन खेलों का शुभंकर अप्पू नाम का हाथी था। राष्ट्रपति जैल सिंह ने खेलों का उद्घाटन किया, पीटी उषा ने खिलाड़ियों की ओर से शपथ ली और ये खेल जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित किए गए थे।
1986 सोल : दसवें एशियाई खेल 20 सितंबर से पाँच अक्टूबर 1986 के बीच दक्षिण कोरिया के सोल में आयोजित किए गए। इन खेलों में 27 देशों के 4839 एथलीट्स शामिल हुए और कुल 25 स्पर्धाओं में पदक बाँटे गए। जूडो, ताइक्वांडो, महिलाओं की साइक्लिंग और महिलाओं की निशानेबाजी को इन खेलों में शामिल किया गया। इन खेलों में 83 एशियाई रिकॉर्ड और तीन विश्व रिकॉर्ड टूटे। पीटी उषा इन खेलों की स्टार एथलीट थी जिन्होंने चार स्वर्ण और एक रजत पदक जीता। दक्षिण कोरिया ने जापान को हटाकर पदक तालिका में दूसरा स्थान हासिल कर लिया।
1990 बीजिंग : ग्यारहवें एशियाई खेलों का आयोजन 22 सितंबर से सात अक्टूबर 1990 के बीच चीन के बीजिंग में हुआ। चीन में बड़े पैमाने पर आयोजित हुआ ये पहला खेल आयोजन था। 37 देशों के कुल 6122 एथलीट उनमें शामिल हुए और 29 स्पर्धाएँ आयोजित हुईं। इन खेलों में सॉफ्टबॉल, सेपक टाकरॉ, वुशु, कबड्डी और कनूइंग पहली बार शामिल किए गए। कुवैत पर इराकी हमले में एशियाई ओलिम्पिक परिषद के प्रमुख शेख फहद अल-सबा भी मारे गए थे और ग्यारहवें एशियाड में यही चर्चा का बड़ा विषय था। इन खेलों में सात विश्व रिकॉर्ड और 89 एशियाई रिकॉर्ड टूटे।
1994 हिरोशिमा : बारहवें एशियाई खेल दो से 16 अक्टूबर 1994 के बीच जापान के हिरोशिमा में आयोजित हुए। इन खेलों का मुख्य संदेश एशियाई देशों में शांति और सौहार्द को बढ़ाना था। इस पर खासा जोर दिया गया क्योंकि 1945 में इस जगह पर पहला परमाणु बम गिराया गया था। पूर्व सोवियत संघ से स्वतंत्र हुए कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान को इन खेलों में शामिल किया गया।
ये पहले एशियाई खेल थे जो किसी देश की राजधानी में आयोजित नहीं हुए थे। पहले खाड़ी युद्ध के बाद इराक को खेलों से निलंबित रखा गया था। 42 देशों के 6828 एथलीट ने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और कुल 34 स्पर्धाएँ आयोजित हुईं। बेसबॉल, कराटे और आधुनिक पेंटाथलन इन खेलों में शामिल हुए।
1998 बैंकॉक : तेरहवें एशियाई खेल छह से 20 दिसंबर 1998 के बीच बैंकॉक में आयोजित हुए। इन खेलों में कुल 41 देशों ने हिस्सा लिया। बैंकॉक ने इस तरह चौथी बार एशियाई खेलों का आयोजन किया। इससे पहले 1966 में ये खेल बैंकॉक को दिए गए थे जबकि 1970 और 1978 में उसे दूसरे देशों के आयोजन नहीं कर पाने की वजह से ये आयोजन करना पड़ा था। एक बार फिर थाईलैंड के नरेश भूमिबोल अदुल्यदेज ने इन खेलों का उद्घाटन किया।
2002 बुसान : चौदहवें एशियाई खेलों का आयोजन 29 सितंबर से 14 अक्टूबर 2002 के बीच दक्षिण कोरिया के बुसान में हुआ। 44 देशों के 6572 एथलीट्स ने इन खेलों में हिस्सा लिया। 38 खेलों में मुकाबले हुए जबकि 18 हजार पत्रकार, अधिकारी और एथलीट इसमें शामिल हुए। खेलों के इतिहास में पहली बार एशियाई ओलिम्पिक परिषद के सभी 44 सदस्य देश शामिल हुए। इनमें उत्तर कोरिया और अफगानिस्तान भी शामिल हुए।
2006 कतर : 15वें एशियाई खेल कतर के दोहा में एक से 15 दिसंबर 2006 के बीच आयोजित हुए। मध्य पूर्व क्षेत्र से दोहा दूसरा शहर बना जिसने एशियाड का आयोजन किया था। उससे पहले 1974 में तेहरान इन खेलों का आयोजन कर चुका था। 29 खेलों की 46 स्पर्धाएँ आयोजित हुईं। परिषद के सभी 45 देशों ने इन खेलों में हिस्सा लिया। खेलों के दौरान ही दक्षिण कोरियाई घुड़सवार किम ह्युंग चिल की मौत हो गई और उसकी खेलों के दौरान काफी चर्चा रही थी।
चीन एशियाड का 16वाँ पड़ाव है। इस प्रसंग पर एशियाड के अतीत पर एक नजर डाली जाए -
1951 नई दिल्ली : पहले एशियाई खेल 4 से 11 मार्च 1951 के बीच नई दिल्ली में आयोजित हुए थे। ये खेल पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 1950 में होने थे मगर तैयारियों में देरी के चलते इन्हें 1951 तक के लिए टाल दिया गया। हालाँकि जापान को लंदन में 1948 में हुए ओलिम्पिक में हिस्सा लेने नहीं दिया गया था और एशियाई खेल महासंघ की संस्थापक बैठक में भी वो शामिल नहीं हुआ, मगर इन खेलों में उसने हिस्सा लिया। इन खेलों का उद्घाटन देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने किया था।
1954 मनीला : दूसरे एशियाई खेल फिलीपीन्स की राजधानी मनीला में एक से नौ मई 1954 के बीच आयोजित हुए। इन खेलों के उद्घाटन की घोषणा राष्ट्रपति रैमन मैगसायसाय ने की थी और ये रिजाल मेमोरियल स्टेडियम में आयोजित हुए।
1958 टोकियो : तीसरे एशियाई खेलों का आयोजन जापान की राजधानी टोकियो में हुआ। 24 मई से एक जून 1958 के बीच ये आयोजन हुआ, जिसमें 20 देशों के 1820 एथलीट्स ने 13 स्पर्धाओं में हिस्सा लिया। पिछली बार के मुकाबले इस बार पाँच स्पर्द्धाएँ ज्यादा थीं। एशियाई खेलों में पहली बार मशाल की परंपरा भी शुरू की गई।
1962 जकार्ता : चौथे एशियाई खेल 24 अगस्त से चार सितंबर 1962 के बीच इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में आयोजित हुए। इसराइल और ताइवान के एथलीट्स इन खेलों में हिस्सा नहीं ले सके। अरब देशों और चीन के दबाव के चलते इंडोनेशिया सरकार ने इसराइली और ताइवानी प्रतिनिधियों को वीजा देने से इनकार कर दिया। 16 देशों के 1460 एथलीट्स ने एशियाड में हिस्सा लिया और बैडमिंटन इन खेलों में शामिल किया गया। राष्ट्रपति सुकर्णो ने इन खेलों के उद्घाटन की घोषणा की थी।
1966 बैंकॉक : पाँचवें एशियाई खेल नौ से 20 दिसंबर 1966 के बीच थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में आयोजित हुए। ताइवान और इसराइल की खेलों में वापसी हुई। कुल 18 देशों के ढाई हजार एथलीट और अधिकारी इन खेलों में शामिल हुए। महिलाओं के वॉलीबॉल को इन खेलों में शामिल किया गया। थाईलैंड के महाराज भूमिबोल अदुल्यदेज ने इन खेलों का उद्घाटन किया था।
1970 बैंकॉक : छठे एशियाई खेल 24 अगस्त से चार सितंबर 1970 के बीच बैंकॉक में ही आयोजित हुए। शुरुआती योजना के मुताबिक़ दक्षिण कोरिया के सोल को इसका आयोजन करना था मगर उत्तर कोरिया से सुरक्षा को धमकी को देखते हुए उसने दावेदारी छोड़ दी। 18 देशों के 2400 एथलीट्स और अधिकारी इन खेलों में शामिल हुए। यॉटिंग पहली बार इन खेलों में शामिल हुआ और एक बार फिर भूमिबोल अदुल्यदेज ने खेलों का उद्घाटन किया।
1974 तेहरान : सातवें एशियाई खेल एक से 16 सितंबर 1974 के बीच ईरान की राजधानी तेहरान में आयोजित किए गए थे। इन खेलों के लिए आजादी खेल परिसर बनवाया गया था और पहली बार मध्य पूर्व के किसी देश ने इसका आयोजन किया। तेहरान में हुए इस आयोजन में 25 देशों के 3010 एथलीट शामिल हुए जो कि खेलों की शुरुआत से लेकर तब तक का सबसे बड़ा आयोजन साबित हुआ।
तलवारबाज़ी, जिम्नास्टिक्स और महिलाओं का बास्केटबॉल इन खेलों में शामिल हुआ। फ़लस्तीन से ख़तरों को देखते हुए सुरक्षा की ज़बरदस्त व्यवस्था की गई थी। मगर ये खेल राजनीति का भी शिकार हुए क्योंकि अरब मूल के देशों, पाकिस्तान, चीन और उत्तर कोरिया ने इसराइल के विरुद्ध टेनिस, तलवारबाज़ी, बास्केटबॉल और फ़ुटबॉल के मुकाबलों में उतरने से इनकार कर दिया।
1978 बैंकॉक : आठवें एशियाई खेल नौ से 20 दिसंबर 1978 के बीच बैंकॉक में ही आयोजित हुए। बांग्लादेश और भारत के साथ तनाव के बाद पाकिस्तान ने एशियाई खेलों के आयोजन की योजना छोड़ दी। सिंगापुर ने वित्तीय कारणों से खेलों का आयोजन करने से मना कर दिया। इसके बाद एक बार फिर थाईलैंड ने मदद की पेशकश की और खेल बैंकॉक में आयोजित हुए। राजनीतिक कारणों से इसराइल को खेलों से बाहर कर दिया गया। 25 देशों के 3842 एथलीट इसमें शामिल हुए और तीरंदाज़ी के साथ ही बोलिंग को खेलों में शामिल किया गया।
1982 नई दिल्ली : नौवें एशियाई खेल 19 नवंबर से चार दिसंबर 1982 के बीच नई दिल्ली में आयोजित हुए। पहले खेलों के बाद दूसरी बार दिल्ली ने ये खेल आयोजित किए। ये एशियाई खेल एशियाई ओलिम्पिक परिषद के नेतृत्त्व में हुए। एशियाई खेल महासंघ को भंग करके ही एशियाई ओलिम्पिक परिषद का गठन हुआ। 33 देशों के 3411 एथलीट खेलों में शामिल हुए। घुड़सवारी, गोल्फ, हैंडबॉल, नौकायन और महिलाओं की हॉकी इन खेलों में शामिल हुआ।
इससे पहले के खेलों में जापान सर्वाधिक पदक जीतने वाला देश था मगर इन खेलों में पहली बार चीन ने जापान की जगह ले ली और उसके बाद से उसे कोई हटा नहीं सका है। इन खेलों की तैयारी में भारत में बड़े पैमाने पर रंगीन टेलिविजन का प्रसार हुआ। इन खेलों का शुभंकर अप्पू नाम का हाथी था। राष्ट्रपति जैल सिंह ने खेलों का उद्घाटन किया, पीटी उषा ने खिलाड़ियों की ओर से शपथ ली और ये खेल जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित किए गए थे।
1986 सोल : दसवें एशियाई खेल 20 सितंबर से पाँच अक्टूबर 1986 के बीच दक्षिण कोरिया के सोल में आयोजित किए गए। इन खेलों में 27 देशों के 4839 एथलीट्स शामिल हुए और कुल 25 स्पर्धाओं में पदक बाँटे गए। जूडो, ताइक्वांडो, महिलाओं की साइक्लिंग और महिलाओं की निशानेबाजी को इन खेलों में शामिल किया गया। इन खेलों में 83 एशियाई रिकॉर्ड और तीन विश्व रिकॉर्ड टूटे। पीटी उषा इन खेलों की स्टार एथलीट थी जिन्होंने चार स्वर्ण और एक रजत पदक जीता। दक्षिण कोरिया ने जापान को हटाकर पदक तालिका में दूसरा स्थान हासिल कर लिया।
1990 बीजिंग : ग्यारहवें एशियाई खेलों का आयोजन 22 सितंबर से सात अक्टूबर 1990 के बीच चीन के बीजिंग में हुआ। चीन में बड़े पैमाने पर आयोजित हुआ ये पहला खेल आयोजन था। 37 देशों के कुल 6122 एथलीट उनमें शामिल हुए और 29 स्पर्धाएँ आयोजित हुईं। इन खेलों में सॉफ्टबॉल, सेपक टाकरॉ, वुशु, कबड्डी और कनूइंग पहली बार शामिल किए गए। कुवैत पर इराकी हमले में एशियाई ओलिम्पिक परिषद के प्रमुख शेख फहद अल-सबा भी मारे गए थे और ग्यारहवें एशियाड में यही चर्चा का बड़ा विषय था। इन खेलों में सात विश्व रिकॉर्ड और 89 एशियाई रिकॉर्ड टूटे।
1994 हिरोशिमा : बारहवें एशियाई खेल दो से 16 अक्टूबर 1994 के बीच जापान के हिरोशिमा में आयोजित हुए। इन खेलों का मुख्य संदेश एशियाई देशों में शांति और सौहार्द को बढ़ाना था। इस पर खासा जोर दिया गया क्योंकि 1945 में इस जगह पर पहला परमाणु बम गिराया गया था। पूर्व सोवियत संघ से स्वतंत्र हुए कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान को इन खेलों में शामिल किया गया।
ये पहले एशियाई खेल थे जो किसी देश की राजधानी में आयोजित नहीं हुए थे। पहले खाड़ी युद्ध के बाद इराक को खेलों से निलंबित रखा गया था। 42 देशों के 6828 एथलीट ने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और कुल 34 स्पर्धाएँ आयोजित हुईं। बेसबॉल, कराटे और आधुनिक पेंटाथलन इन खेलों में शामिल हुए।
1998 बैंकॉक : तेरहवें एशियाई खेल छह से 20 दिसंबर 1998 के बीच बैंकॉक में आयोजित हुए। इन खेलों में कुल 41 देशों ने हिस्सा लिया। बैंकॉक ने इस तरह चौथी बार एशियाई खेलों का आयोजन किया। इससे पहले 1966 में ये खेल बैंकॉक को दिए गए थे जबकि 1970 और 1978 में उसे दूसरे देशों के आयोजन नहीं कर पाने की वजह से ये आयोजन करना पड़ा था। एक बार फिर थाईलैंड के नरेश भूमिबोल अदुल्यदेज ने इन खेलों का उद्घाटन किया।
2002 बुसान : चौदहवें एशियाई खेलों का आयोजन 29 सितंबर से 14 अक्टूबर 2002 के बीच दक्षिण कोरिया के बुसान में हुआ। 44 देशों के 6572 एथलीट्स ने इन खेलों में हिस्सा लिया। 38 खेलों में मुकाबले हुए जबकि 18 हजार पत्रकार, अधिकारी और एथलीट इसमें शामिल हुए। खेलों के इतिहास में पहली बार एशियाई ओलिम्पिक परिषद के सभी 44 सदस्य देश शामिल हुए। इनमें उत्तर कोरिया और अफगानिस्तान भी शामिल हुए।
2006 कतर : 15वें एशियाई खेल कतर के दोहा में एक से 15 दिसंबर 2006 के बीच आयोजित हुए। मध्य पूर्व क्षेत्र से दोहा दूसरा शहर बना जिसने एशियाड का आयोजन किया था। उससे पहले 1974 में तेहरान इन खेलों का आयोजन कर चुका था। 29 खेलों की 46 स्पर्धाएँ आयोजित हुईं। परिषद के सभी 45 देशों ने इन खेलों में हिस्सा लिया। खेलों के दौरान ही दक्षिण कोरियाई घुड़सवार किम ह्युंग चिल की मौत हो गई और उसकी खेलों के दौरान काफी चर्चा रही थी।
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मेजबान चीन के खिलाड़ी हर खेल में अपनी काबिलियत साबित करकेअपने गले सोने के पदकों को सजाने में लगे हुए हैं। 16वें एशियाई खेलों की ताजा पदक तालिका इस प्रकार है-
देश | स्वर्ण | रजत | काँस्य | कुल |
चीन | 199 | 119 | 98 | 416 |
द.कोरिया | 76 | 65 | 91 | 232 |
जापान | 48 | 74 | 94 | 216 |
ईरान | 20 | 14 | 25 | 59 |
कजाकिस्तान | 18 | 23 | 38 | 79 |
भारत | 14 | 17 | 33 | 64 |
चीनी ताइपे | 13 | 16 | 38 | 67 |
उज्बेकिस्तान | 11 | 22 | 23 | 56 |
थाईलैंड | 11 | 9 | 32 | 52 |
मलेशिया | 9 | 18 | 14 | 41 |
हांगकांग | 8 | 15 | 17 | 40 |
उ. कोरिया | 6 | 10 | 20 | 36 |
सऊदी अरब | 5 | 3 | 5 | 13 |
बहरिन | 5 | 0 | 4 | 9 |
इंडोनेशिया | 4 | 9 | 13 | 26 |
सिंगापुर | 4 | 7 | 6 | 17 |
कुवैत | 4 | 6 | 1 | 11 |
कतर | 4 | 5 | 7 | 16 |