स्वाधीनता के बाद 26 जनवरी 1950 को प्रतिपादित मीडिया रिवोल्यूशन एक्ट अब तक का सबसे अहम प्रेस कानून है। यद्यपि हमारे संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार के तहत गिनाई जाती है मगर सन 1975 में पहली बार श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल के नाम पर प्रेस की स्वतंत्रता पर वज्र प्रहार के बाद देश में मीडिया के अधिकारों को लेकर काफी बवाल मचा। संजय गांधी और विद्याचरण शुक्ल की मेहरबानियों से परेशान मीडिया समाज बड़ा ही कुपित हुआ और कई अख़बारों ने विरोध स्वरुप संपादकीय कॉलम कुछ लिखने के बजाय कोरा छोड़ दिया ,
सुचना के अधिकार ने वैचारिक क्रांति लायी है .पीत पत्रकारिता का भी विस्तार हो चूका है ..कलम से ठीक करना अनेको की प्राथमिकता है .सतर्कता का सन्देश जनता के लिए है...लेकिन जिनका जिम्मेवारी है वे सिर्फ बात करते है ,कानून बनाते है ,और फिर तमाशा देखते है !पैड न्यूज़ के समज मे कोई भी एक्ट बेमानी है ..जिसे हित साधना है वे रास्ता निकाल ही लेते है ,वैश्विक समाज मे दायित्व निर्वहन का स्तर आज भी वही है !
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